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शेर
सब का अलग अंदाज़ था सब रंग रखते थे जुदा
रहना सभी के साथ था सो ख़ुद को पानी कर लिया
राघवेंद्र द्विवेदी
शेर
मिल गया था बाग़ में माशूक़ इक नक-दार सा
रंग ओ रू में फूल की मानिंद सज में ख़ार सा
आबरू शाह मुबारक
शेर
गुलशन-ए-दहर में सौ रंग हैं 'हातिम' उस के
वो कहीं गुल है कहीं बू है कहीं बूटा है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
हम बहुत देखे फ़रंगिस्तान के हुस्न-ए-सबीह
चर्ब है सब पर बुतान-ए-हिन्द का रंग-ए-मलीह